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अध्याय 31 – राष्‍ट्रीय पहचान-पत्र प्रणाली (सिस्टम) लागू करने पर `राईट टू रिकाल ग्रुप`/`प्रजा अधीन राजा समूह` के प्रस्‍ताव

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 राष्‍ट्रीय पहचान-पत्र प्रणाली (सिस्टम) लागू करने पर `राईट टू रिकाल ग्रुप`/`प्रजा अधीन राजा समूह` के प्रस्‍ताव

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(31.1) पहचान-पत्र प्रणाली (सिस्टम) का अभाव 

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हमारे अधिकारी लोग और मंत्री लोग इतने सड़े हुए(भ्रष्‍ट) हैं और हमारी वर्तमान पहचान-पत्र प्रणालियां, राशन कार्ड, चुनाव कार्ड, पैन कार्ड आदि इतने बेकार/पुराने हैं कि अनेक नागरिकों का भरोसा ही उठ गया है कि “पहचान-पत्र प्रणाली(सिस्टम)” बनाई भी जा सकती है। मामले को आगे और बिगाड़ने के लिए, बुद्धिजीवियों ने नागरिकों को पहचान-पत्र प्रणाली(सिस्टम) के बारे में जानकारी/सूचना न देने की कसम ही खा ली है और इसलिए बहुत से लोग अभी भी यह मानते हैं कि पहचान-पत्र प्रणाली(सिस्टम) का अर्थ केवल “एक कार्ड जारी करना” है, लेकिन बात ऐसी नहीं है। पहचान-पत्र प्रणाली(सिस्टम) में महत्‍वपूर्ण भाग/हिस्सा एक सरकारी डाटाबेस में (विवरण) दर्ज कराया जाना है – यह केवल एक कार्ड भर/ही नहीं है क्‍योंकि कार्ड आसानी से नकली/जाली बन सकते हैं। और बुद्धिजीवी लोग यह झूठ बोलकर लोगों को भटकाते/बहकाते हैं कि “अमेरिका में पहचान-पत्र प्रणाली(सिस्टम) है – वे अवैध कार्यों को रोकने में सफल नहीं हो पाए हैं।” मैं आगे चलकर इस झूठ से पर्दा उठाउंगा।

पहचान-पत्र प्रणाली(सिस्टम) क्‍या है? पहचान-पत्र प्रणाली(सिस्टम) केवल एक कार्ड नहीं है – कार्ड तो इसका एक छोटा सा भाग/हिस्‍सा है। पहचान-पत्र प्रणाली(सिस्टम) एक ऐसी प्रणाली(सिस्टम) है जिसमें नागरिकों, अन्‍य लोगों, कम्‍पनियों आदि के ठीक-ठीक/सटीक रिकार्ड प्राप्‍त किए जाते हैं। एक बिलकुल सही(बिना कोई गलतियों के) पहचान-पत्र प्रणाली(सिस्टम) बहुत आसानी से संभव है और यह प्रति व्‍यक्‍ति के आधार पर बहुत ही सस्‍ता है। और यह पहचान-पत्र प्रणाली(सिस्टम) बहुत सी समस्‍याओं का बड़ी आसानी से/चुटकियों में समाधान करता है:-

1.    यदि निजी पहचान-पत्र प्रणाली(सिस्टम) को एक कानून से जोड़ दिया जाए कि “मालिक/मालिक को कर्मचारियों के पहचान-पत्र, अंगुलियों के छाप (फिंगर प्रिन्‍ट), फोटो की जानकारी सरकार को देनी होगी” तो इससे बांग्‍लादेशी घुसपैठ कम होकर आज की तुलना में 1 प्रतिशत से भी कम हो जाएगा।

2.    पहचान-पत्र प्रणाली(सिस्टम), बेनामी जमीन रखने वालों की पहचान करके उन्‍हें अलग कर सकता है और टैक्‍स चोरी कम कर सकता है।

  1. पहचान-पत्र प्रणाली(सिस्टम) प्रत्‍येक सरकारी विभाग में रिकार्ड/अभिलेख रखने की लागत कम कर सकता है और संदेहास्‍पद व्यक्‍तियों पर नजर रखने/उन्‍हें पकड़ने के काम को आसान बना सकता है और इस प्रकार पुलिस द्वारा नियंत्रण रखने के काम की लागत भी कम करता है।

  2. डी.एन.ए. डाटाबेस(आंकड़ा-कोष) के साथ पहचान-पत्र प्रणाली(सिस्टम) बलात्‍कारियों और अनेक अन्‍य अपराधियों पर नजर रखने और उन्‍हें पकड़ने में उपयोगी है।

  3. डी.एन.ए. डाटाबेस(आंकड़ा-कोष) के साथ पहचान-पत्र प्रणाली(सिस्टम) संबंधों/रिश्‍तों की रजिस्‍ट्री दर्ज कराने और जांच/साबित करने में सहायक/उपयोगी हो सकता है जिसका प्रयोग करके वर्तमान में (भारत में) रह रहे बांग्‍लादेशियों की पहचान करके उनका बांग्‍लादेशी होना साबित करके उन्‍हें देश से निकाला जा सकता है।

यदि पहचान-पत्र प्रणाली(सिस्टम) और “प्रत्‍येक  कर्मचारी की जानकारी देने/रिपोर्ट करने” का कानून लागू नहीं किया जाता है तो पूर्वोत्‍तर में बांग्‍लादेशियों की जनसंख्‍या इस हद तक बढ़ जाएगी कि पूर्वोत्‍तर बांग्‍लादेश का हिस्‍सा बन जाएगा और पूर्वोत्‍तर में करोड़ो भारतीय उसी प्रकार मारे जाएंगे जिस प्रकार वर्ष 1947 में मारे गए थे।

मैं `राईट टू रिकाल ग्रुप`/`प्रजा अधीन राजा समूह` के सदस्‍य के रूप में निजी पहचान-पत्र प्रणाली(सिस्टम) 1 वर्ष के भीतर और नागरिक पहचान-पत्र प्रणाली(सिस्टम) 2 वर्ष के भीतर बनाने का प्रस्‍ताव करता हूँ।

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(31.2) नागरिक पहचान-पत्र प्रणाली (सिस्टम) से आशाएं

 

दु:ख की बात है कि भारत के बुद्धिजीवी लोग हम आम लोगों को पहचान-पत्र प्रणाली(सिस्टम) के बारे में सूचना/जानकारी देने के इतने खिलाफ हैं कि हमलोगों में से ज्‍यादातर लोग यह तक नहीं जानते कि पहचान-पत्र प्रणाली(सिस्टम) का अर्थ क्‍या है और यह क्‍या कर सकता है।

एक नागरिक पहचान-पत्र प्रणाली(सिस्टम) एक ऐसी प्रणाली(सिस्टम) है जो किसी समूह/समाज और एक सरकारी अधिकारी को यह सुनिश्‍चित करने में समर्थ/सक्षम बनाती है कि कोई व्‍यक्‍ति “हमलोगों में से ही एक” है, और वह (वाकई) वही व्‍यक्‍ति है जो वह खुद को बता रहा है और वह (सही में) वही व्‍यक्‍ति है जो सरकारी रिकार्डों में दर्ज है। पहचान-पत्र प्रणाली(सिस्टम) से जुड़े कुछ मुद्दे निम्‍नलिखित हैं :-

  1. पहचान-पत्र संख्‍या जीवन भर कभी भी नहीं बदली जा सकनी चाहिए।

  2. पहचान-पत्र संख्‍या राष्‍ट्र भर में हर व्‍यक्‍ति के लिए एकल/एकदम अलग होनी चाहिए।

  3. प्रत्‍येक नागरिक के पास नागरिक पहचान-पत्र होना जरूरी है ; बाहर से आने वाले सभी गैर-नागरिकों के पास अवश्‍य ही एक अलग प्रकार का पहचान-पत्र होगा।

  4. कोई नागरिक जैसे ही आवेदन करता है तो उसे एक क्रम संख्‍या अवश्‍य दी जाए। इस कार्य में देरी को 15 मिनट तक सीमित करना संभव है लेकिन दिनों की देरी नहीं होनी चाहिए।

  5. सरकारी रिकार्डों/अभिलेखों में गलतियों को ठीक करना कुछ ही मिनटों में संभव होना चाहिए।

  6. यदि किसी नागरिक का मूल/पहला पहचान-पत्र खो/गुम हो जाता है तो उसे कुछ ही घंटों में नया कार्ड मिल जाना चाहिए।

  7. कार्ड पर पर्याप्‍त जानकारी/ब्‍यौरे (लिखे/छपे) होना चाहिए ताकि किसी अधिकारी के लिए यह पक्का करना संभव और आसान हो सके कि कार्डधारक व्‍यक्‍ति वही है जिसका फोटो कार्ड पर है।

 

आधुनिक तकनीक ने इन समस्‍याओं को लगभग 20 से 30 वर्ष पहले ही सुलझा लिया है। और आज इन्‍हें इस हद तक सुलझा लिया गया है कि ये मामूली बात होकर रह गई हैं। कैसे? अंगुलियों के छाप(फिंगर प्रिंट) पर विचार कीजिए। अंगुलियों के छाप (फिंगर प्रिंट) कम्‍प्‍यूटर में स्‍कैन करके किसी व्‍यक्‍ति की पहचान की जांच की जा सकती है। अब मान लीजिए, 10 लाख की जनसंख्‍या में से लगभग 1000 नागरिकों ने धोखाधड़ी करके 2 अलग-अलग पहचान-पत्र/कार्ड प्राप्‍त कर लिए हैं। तब फिंगर प्रिंटों की तुलना करके आधुनिक कम्‍प्‍यूटर इन नकलों/जालसाजियों में से 95 प्रतिशत से ज्‍यादा की पहचान कुछ ही घंटों में के भीतर कर सकता है। साथ ही, किसी व्‍यक्‍ति को रक्‍त समूहों/ब्लड ग्रुपों जैसे A, B, O, + – M, N, K  आदि कारकों/फैक्‍टर्स की जानकारी जमा करने की जरूरत पड़ सकती है। मुख्‍यत: लगभग 2 दर्जन ऐसे कारक मानव रक्‍त में होते हैं जो ब्‍लड ग्रुप/रक्‍त समूह को लगभग एकल/एकमात्र बना देते हैं। यदि कुछ लोगों ने दो अलग-अलग पहचान-पत्र संख्‍या प्राप्‍त कर ली है तो कार्ड पर उसके ब्‍लड ग्रुप/रक्‍त समूह के ब्‍यौरे एक समान होंगे और कोई कम्‍प्‍यूटर नकल/दोहराव की पहचान करके उसे पकड़ सकता है। और यदि एक बार इस प्रणाली(सिस्टम) को डी.एन.ए. नक्शा/प्रोफाइल/ब्‍यौरे के लिए धन दिया जाता है तो पहचान और नकल/दोहराव से संबंधित सभी मुद्दे छूमंतर हो जाएंगे।

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श्रेणी: प्रजा अधीन